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उस आवारा का चटख़ारा

लखनवी तहज़ीब और ठाठ-बाट के क्या ही कहने, तिस पे लखनवी दबिस्तान-ए-शायरी। बाज़ार-ए-अदब में लखनवी-दबिस्तान की इस छोटी-सी दुकान के आगे बहुत शोर मचाया इस शख़्स ने और अपना नाम लोगों को रटा गया। नाम तो याद ही होगा… असरार-उल-हक़ मजाज़।

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मुक्तिबोध : भाषा और अवचेतन का सवाल तथा ब्रह्मराक्षसीय ट्रैजेडी

 मुक्तिबोधीय रचना-प्रक्रिया में अवचेतन और भाषा के अंतर्संबंध कविता लकड़ी का रावण की अपनी रीडिंग में यह स्थापित करने का प्रयास किया है कि मुक्तिबोधीय

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